गाँधी

1- झंडे का दिन

सुबह के छः बजे थे सूर्य की किरणे चारों ओर अपनी स्वर्णिम आभा बिखेर रही थी। हवा मंद मंद चल रही थी। बगीचे में खिले फूलों की महक सारे वातावरण को तरोताजा बना रही थी। इस समय तक बहुत से लोग सुबह की सैर को निकल पड़ते हैं। मैं भी उनमें से एक थी। यह हमारी कालोनी से करीब दो किलोमीटर दूर का हिस्सा था। यहां पर बड़ी बड़ी मल्टियांें का निर्माण हो रहा है। जिस कारण वहां काम करने वाले बहुत से मजदूर लोग वहां पर अपनी अपनी झोपड़ी बनाकर रहते हैं। उन लोगों के कारण वहां पर चहल पहल रहती है। उनके बच्चे वहां पर गोला बनाकर खेलते रहते हैं।

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